• Atmabodh (आत्मबोध)

हमारे सनातन वैदिक साहित्य के ज्ञानकाण्ड को ‘उपनिषद्’ कहते हैं । हजारों वर्ष पूर्व भारत के प्रात:स्मरणीय ऋषियों ने जीव-जगत्, आत्मा-परमात्मा, ब्रह्म तथा माया आदि विषयों पर प्रबल जिज्ञासा के साथ जो गहन चिन्तन किया था और अति-मानवीय साधना के द्वारा जो अलौकिक अनुभूतियाँ प्राप्त की थीं, उन्हीं का संकलन ‘उपनिषद्’ या ‘वेदान्त’ कहलाता है । प्रमुख उपनिषदों, ब्रह्मसूत्र तथा श्रीमद्-भगवद्-गीता – इन ‘प्रस्थान’ ग्रन्थों पर आचार्य शंकर ने ललित भाष्य लिखे हैं । वेदान्त के मूल ग्रन्थों का अध्ययन आरम्भ करने की पूर्वतैयारी के रूप में उन्होंने कुछ ‘प्रकरण-ग्रन्थ’ भी लिखे हैं । उन्हीं में ‘आत्मबोध’ नाम का यह छोटा-सा, पर अति महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ भी है । वेदान्त के सभी जिज्ञासुओं तथा साधकों के लिये यह अति उपयोगी है । इसमें मात्र अड़सठ श्लोकों के माध्यम से आत्मतत्त्व का निरूपण किया गया है । इसमें श्रीशंकराचार्य ने समझाया है कि इस आत्मा का बोध होने के लिये क्या-क्या साधना आवश्यक है और आत्मबोध हो जाने से साधक को क्या उपलब्धि होती है । मूल संस्कृत श्लोकों को समुचित प्रकार से समझने के लिये इस पुस्तक में हमने उनका पदच्छेद, अन्वयार्थ तथा सहज हिन्दी में अनुवाद दिया है । साथ ही विद्वानों की सुविधा हेतु अन्त में वर्णक्रम के अनुसार श्लोक-अनुक्रमणिका भी दी है ।


Translated by Swami Videhatmananda

Publisher Ramakrishna Math, Nagpur,

Atmabodh (आत्मबोध)

  • Rs.15.00