




H207 Anandamay Jivan Ke Sutra (आनंदमय जीवन के सूत्र)
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ANANDAMAY JIVAN KE SUTRA -H-70
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मनुष्य योनि ‘कर्म-योनि’ है। मनुष्येतर जितनी भी योनियाँ हैं, वे ‘भोग-योनि’ के अन्तर्गत आती हैं। उन योनियों में जीव कर्म करने के लिए स्वतंत्र नहीं रहता। वह अपने पूर्व कर्मों के भोग के लिए बाध्य रहता है, पर मनुष्य-योनि में जीव शुभ-अशुभ का विचार करके विवेकपूर्वक श्रेष्ठ मार्ग का अवलम्बन कर जीवन के परम आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। जीवन के प्रति ऐसी ज्ञानपूर्ण दृष्टि विकसित करने में सत्-साहित्य का अध्ययन बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। स्वामी सत्यरूपानन्द जी रामकृष्ण मिशन के वरिष्ठ संन्यासी हैं और वर्तमान में वे रामकृष्ण मिशन विवेकानन्द आश्रम, रायपुर के सचिव हैं। एक विचारक, कुशल लेखक और प्रभावशाली वक्ता के रूप में इनकी ख्याति है। उन्होंने मनुष्य जीवन के उच्च भावों को प्रोत्साहित करने वाले विविध विषयों पर अनेक विचारोत्तेजक लेख लिखे हैं, जो रायपुर आश्रम से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘विवे-क-ज्योति’ में वर्षों से प्रकाशित और प्रशंसित होते रहे हैं।