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Swami Purushottamananda Pages
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इस ग्रन्थ में चार अध्याय हैं । अध्ययन में मन को एकाग्र करना आज के छात्र-छात्राओं की एक बड़ी समस्या है । इस पुस्तक के ‘एकाग्रता का रहस्य’ नामक पहले अध्याय में इसी विषय पर कुछ व्यावहारिक सुझाव दिये गये हैं । इसका हिन्दी अनुवाद श्री एस. के पाढ़ी तथा प्रदीप नारायण शर्मा ने किया है । इसके अलावा छात्रों को जीवन के कुछ अन्य पहलुओं पर भी ध्यान देना पड़ता है तथा उनके साथ समायोजन करना पड़ता है । ‘एक विद्यार्थी के नाम पत्र’ नामक दूसरा अध्याय इसी पर प्रकाश डालता है । इसका अनुवाद श्रीमती निर्मल श्रीवास्तव ने किया है । आज के तकनीकी युग में, अनेक प्रकार के यंत्र तथा मनोरंजन के साधन अत्यन्त सुलभ तथा जीवन के अपरिहार्य अंग बन गये हैं; अत: अब इस बात पर ध्यान देना जरूरी हो गया है कि हम उनके लिये कितना समय दें, ताकि अध्ययन-कार्य में कोई बाधा न उपस्थित हो । ‘समय का सदुपयोग’ नामक तीसरा अध्याय इसी के उपाय बताता है । सही मन:स्थिती के बिना जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना टेढ़ी खीर है; ‘प्रार्थना या आत्म-सम्मोहन’ नामक चौथा अध्याय इसी का रहस्य प्रकट करता है ।