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KATHA UPANISHAD H-45
KATHA UPANISHAD H-45
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KATHA UPANISHAD H-45
KATHA UPANISHAD H-45
KATHA UPANISHAD H-45
Rs.45.00
Author
Srimad Shankaracharya
Pages
175
Translator
Swami Videhatmananda

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Product Details
सनातन वैदिक धर्म के ज्ञानकाण्ड को उपनिषद् कहते हैं । सहस्रों वर्ष पूर्व भारतवर्ष में जीव-जगत् तथा तत्सम्बन्धी अन्य विषयों पर गम्भीर चिन्तन के माध्यम से उनकी जो मीमांसा की गयी थी, इन उपनिषदों में उन्हीं का संकलन है । वैसे इनकी संख्या दो सौ से भी अधिक है, परन्तु आदि शंकराचार्य ने जिन दस पर भाष्य लिखा है और जिन चार-पाँच का उल्लेख किया है, उन्हें ही प्राचीनतम तथा सर्वप्रमुख माना जाता है । पूज्यपाद श्री शंकराचार्य के काल में भी ये उपनिषद् अत्यन्त प्राचीन हो चुके थे और उनका अर्थ समझना दुरूह हो गया था, अत: उन्होंने वैदिक धर्म की पुन: स्थापना हेतु प्रमुख उपनिषदों पर सरस भाष्य लिखकर अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया । कठोपनिषद् वैदिक साहित्य में कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के ब्राह्मण ग्रन्थ के एक अंश के रूप में प्राप्त होता है । सामान्य व्यक्ति के जिज्ञासु मन में ‘मृत्यु के बाद जीव की गति’ के विषय में जो प्रश्न उठते हैं, उसका समाधान इस ‘कठ’ उपनिषद् में यमराज-नचिकेता-संवाद के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है । उसी को हम अन्वय, सरल हिन्दी अनुवाद तथा शांकर भाष्य के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं । इसके पूर्व हम ईश तथा केन उपनिषदों के शांकर भाष्य सहित हिन्दी अनुवाद प्रकाशित कर चुके हैं । उसी शृंखला की यह तीसरी कड़ी है ।
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