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Swami Vivekananda Pages
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Sri Sushilkumar Chandra Choose Quantity
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`हमारा भारत’ स्वामी विविकानन्दजी के तीन लेखों का संग्रह है। स्वामीजी शिकागो-सर्व-धर्मपरिषद में जगदव्यापी ख्याति प्राप्त कर लेने के बाद जब यूरोपीय देशों में भ्रमण कर रहे थे तब उन्हें प्राध्यापक मैक्समूलर तथा डॉक्टर पॉल डायसन से मिलने का सुअवसर प्राप्त-हुआ था। उन दोनों का भारत पर आन्तरिक प्रेम, संस्कृत भाषा में उनका महान् पाण्डित्य तथा भारतीय दर्शन के महान् सार्वभौमिक सत्यों को सर्वप्रथम पाश्चात्यों के समक्ष घोषित करने का उनका सफल उद्यम देखकर स्वामीजी अत्यन्त प्रभावित हुए थे। प्रस्तुत पुस्तक के प्रथम दो अध्याय `ब्रह्मवादिन्’ पत्र के सम्पादक को प्रकाशनार्थ भेजे गये वही दो लेख हैं जो स्वामीजी द्वारा मैक्समूलर तथा पॉल डायसन पर लिखे गये थे; तथा खेतड़ी के महाराजा द्वारा सर्मिपत किये गये अभिनन्दन-पत्र के उत्तर में स्वामीजी ने उनको जो पत्र लिखा था वही इस पुस्तक का तीसरा अध्याय है। स्वामीजी ने अभिनन्दन-पत्र के उत्तर में यह स्पष्ट रूप से दर्शा दिया है कि भारत का प्राण धर्म में अवस्थित है, और जब तक यह अक्षुण्ण बना रहेगा तब तक विश्व की कोई भी शक्ति उसका विनाश नहीं कर सकती। उन्होंने बड़ी ही मर्मस्पर्शी भाषा में भारत की अवनति का कारण चित्रित किया है तथा यह बता दिया है कि केवल भारत को ही नहीं, वरन् सारे संसार को विनाश के गर्त में पतित होने से यदि कोई बचा सकता है तो वह है वेदान्त का शाश्वत सन्देश।