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SRK VEDANTA KE ALOK ME -H-45

H248 Sri Ramakrishna: Vedanta Ke Aaloka Me (श्रीरामकृष्ण : वेदान्त के आलोक में)

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SRK VEDANTA KE ALOK ME -H-45
Rs.45.00
Author
Swami Tapasyananda
Pages
150
Translator
Dr. Sureshachandra Sharma
Product Details
‘इस पुस्तक में युगावतार श्रीरामकृष्णदेव की आध्यात्मिक अवधारणों को व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करने का एक अभिनव प्रयास किया गया है। यद्यपि श्रीरामकृष्णदेव के उपदेशों पर अनेक प्रकाशन हैं; परन्तु इस प्रकाशन में ईश्वर, मनुष्य और जगत् इन तीन प्रमुख शीर्षकों के अन्तर्गत रखने का एक ऐसा प्रयास किया गया है जो आध्यात्मिक होने के साथ ही दार्शनिक और धार्मिक पक्षों को लिए हुए हैं।

यह कार्य एक असाधारण अधिकारी गहन विचारक तथा सृजनात्मक लेखक स्वामी तपस्यानन्दजी महाराज (१९०४-१९९१) के द्वारा सम्पन्न हुआ है। स्वामी तपस्यानन्दजी महाराज अनेक पुस्तकों के लेखक तथा शास्त्रों के अनुवादक रहे हैं। वे रामकृष्ण संघ के परम उपाध्यक्ष तथा मई १९३१ से अप्रेल १९३९ तक अंग्रेजी मासिक ‘वेदान्त केसरी’ पत्रिका के सम्पादक भी रहे हैं। श्रीरामकृष्ण के उपदेशों, उद्गारों एवम् निर्देशों को प्रमुख तथा उपशीर्षकों को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है कि वे एक एक सार्वभौमिक दर्शन और सन्देश का रूप ले चुके हैं।

श्रीरामकृष्णदेव के विचारों को एक पुरानी परिपाटी और मानसिकता से देखना अब अपर्याप्त प्रतीत होता है। उनके उद्गारों और आध्यात्मिक अनुभवों के गहन निहितार्थों पर पहुँचना तथा उन्हें सर्व सुलभ करना आज की तीव्र आवश्यकता है। वस्तुत: यह एक चुनौती भरा कार्य है। इस चुनौती भरे कार्य को स्वीकार करने वालों के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी – ऐसी हमारी मान्यता है। आध्यात्मिक जीवन के अभीप्सुओं के लिए तो यह एक वरदान ही सिद्ध होगी। सामान्य पाठकों की दृष्टि से भी इस प्रकाशन की उपादेयता भी कम नहीं है; क्योंकि इसमें श्रीरामकृष्ण के विचारों को एक क्रम में संजोया गया है। श्रीरामकृष्ण की उक्तियों को शास्त्रों के वचनों के साथ जोड़कर रखने से शास्त्रों के वास्तविक और व्यावहारिक तात्पर्य को समझने में यह पुस्तक अपना अनुपम स्थान ग्रहण करेगी।

रामकृष्ण मठ, चेन्नई द्वारा प्रकाशित Sri Ramakrishna's Thoughts in a Vedantic Perspective का यह सार्थक तथा सारगर्भित हिन्दी अनुवाद प्रमुख कृषि वैज्ञानिक डॉ. सुरेशचन्द्र शर्मा द्वारा किया गया है। ‘त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये’ कहकर हम इस प्रकाशन को श्रीरामकृष्णदेव को समर्पित करते हैं।
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