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सनातन वैदिक धर्म के ज्ञानकाण्ड को उपनिषद् कहते हैं। सहस्रों वर्ष पूर्व भारतवर्ष में जीव-जगत् तथा तत्सम्बन्धी अन्य विषयों पर गम्भीर चिन्तन के माध्यम से उनकी जो मीमांसा की गयी थी, उपनिषदों में उन्हीं का संकलन है। वैसे तो उनकी संख्या दो सौ से भी अधिक है, परन्तु आदि शंकराचार्यजी ने जिन दस पर भाष्य लिखा है और जिन चार-पाँच का उल्लेख किया है, उन्हें ही प्राचीनतम तथा प्रमुख माना जाता है। इन उपनिषदों में वेदों का ‘ज्ञानकाण्ड’ निहित है और इनमें प्रतिपादित तत्त्वज्ञान को ‘वेदान्त’ की संज्ञा दी गयी है। भगवत्पाद श्रीशंकराचार्यजी के काल से ही इस पर प्रकरण-ग्रन्थ लिखने की परम्परा शुरू हुई । सदानन्द योगीन्द्र द्वारा रचित यह ‘वेदान्त-सार’ ग्रन्थ भी उसी परम्परा की एक कड़ी है, जो संक्षेप में वेदान्त की सर्वांगीण व्याख्या प्रस्तुत करता है और उसे भलीभाँति समझने के लिए अतीव उपयोगी है। इसमें सूत्र रूप में वेदान्त की सम्यक् व्याख्या दी गई है। गौड़पाद, शंकराचार्य, पद्मपाद, हस्तामलक, सुरेश्वराचार्य, सर्वज्ञात्म-मुनि, वाचस्पति मिश्र, श्रीहर्ष, चित्सुखाचार्य तथा विद्यारण्य आदि वेदान्त के प्रमुख व्याख्याकारों के ग्रन्थों को समझने के लिए यह ‘वेदान्त-सार’ ग्रन्थ एक भूमिका के समान है।


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