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ACHARYA SHANKAR -H-50

H076 Acharya Shankar (आचार्य शंकर)

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Author
Swami Apurvananda
Pages
245
Product Details
आचार्य शंकर अद्वैत-वेदान्त के प्रतिष्ठाता तथा संन्यासी-सम्प्रदाय के गुरु माने जाते हैं। उनकी प्रतिभा अपूर्व थी, उनकी साधना अलौकिक थी। और हम कह सकते हैं कि अपनी तेजस्विता तथा दिव्यज्ञान के फलस्वरूप ही उन्होंने हिन्दू धर्म को ह्रास से बचा लिया था। आचार्य शंकर केवल अद्वैतवादी ही नहीं थे वरन् वे द्वैत तथा विशिष्टाद्वैत को भी मान्यता देते थे। असल में इन्हें वे अद्वैतवाद तक पहुँचने की सीढ़ी मानते थे। ईश्वरानुराग तथा भगवद्भक्ति उनमें प्रगाढ़ थी। फलत: उनके द्वारा विरचित अनेकानेक श्लोक तथा स्तोत्र भक्तिभाव से ओतप्रोत हैं। सत्य तो यह है कि उनके स्तोत्रों का लालित्य, उनका माधुर्य तथा उनकी हृदयग्राही शक्ति आचार्य शंकर की दिव्य श्रद्धा का ही प्रतिबिम्ब है। आचार्य शंकर ने हिन्दू धर्म में अनेक आवश्यक एवं निर्माणकारी सुधार किये और उसे पुष्ट नींव पर पुनरुत्थापित किया। भारतवर्ष की चारों दिशाओं में आचार्य शंकर ने चार पीठ की स्थापना की जिनका मुख्य उद्देश्य है वेदान्त का प्रचार एवं प्रसार। इन चार पीठों के द्वारा आचार्य शंकर ने भारतवर्ष में आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक सामंजस्य एवं ऐक्यसंस्थापन का बहुत बड़ा कार्य किया। स्पष्ट है उनकी दूरदर्शिता कितनी प्रखर थी। भारत के इतिहास में इस महत्त्वपूर्ण कार्य का अपना अद्वितीय स्थान है। आचार्य शंकर का प्रामाणिक जीवनचरित आज हमें उपलब्ध नहीं है। केवल दो पुराने जीवनचरित ‘शंकरविजय’ और ‘शंकरदिग्विजय’ ही आज प्राप्य हैं, किन्तु इन दोनों ग्रन्थों में प्रामाणिक तथ्यों के साथ कुछ किंवदन्ती भी प्रविष्ट हो गयी हैं। स्वामी अपूर्वानन्दजी ने कठिन परिश्रम के उपरान्त प्रस्तुत ग्रन्थ जहाँ तक सम्भव हो सका है, प्रामाणिक आधार पर ही लिखा है। फलत: इस ग्रन्थ का महत्त्व असाधारण है।
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