H233 Paramlakshya Prapti Ke Liye Margadarshan (परम लक्ष्यप्राप्ति के लिए मार्गदर्शन)
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PARAM LAKSHYA KI PRAPTI H-40
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Swami Gokulananda Pages
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वर्तमान साहित्य कुछ अंशों में मनोरंजक होता है, कुछ अंशों मे शिक्षाप्रद किन्तु प्रेरक बहुत कम मात्रा में होता है। स्वामी गोकुलानन्दजी के इन ग्यारह प्रवचनों में शिक्षा और प्रेरणा दोनों ही समाहित हैं।
इनसे जो शिक्षा प्राप्त होती है वह पराविद्या-आत्मज्ञान है। लेखक ने इस पुस्तक को “परम लक्ष्य की प्राप्ति हेतु कतिपय दिशा-निर्देश” नाम दिया है। लक्ष्य से अभिप्राय चेतना का शारीरिक बन्धनों से मुक्त होना है जिसे भक्ति की भाषा में मोक्ष कहते हैं। मोक्ष प्राप्ति के जिज्ञासुओं को ये दिशा निर्देश अनुशासित मार्ग दिखाते हैं।
अनेक लेखकों ने इस विषय को दार्शनिक दृष्टिकोण से देखा होगा, परन्तु दर्शन अधिकांश लोगों के लिए एक नीरस एवं शुष्क विषय है। किन्तु इस नीरस दर्शन को प्रेरक बनाया जाय तो यह बौद्धिक एवं आध्यात्मिक विकास के इच्छुक लोगों के लिए एक सरस शरबत बन जाता है।
यह पुस्तक स्वामी गोकुलानन्दजी के ग्यारह प्रवचनों का संकलन है जो उपरोक्त उद्देश्य की पूर्ति करता है अर्थात् शिक्षा एवं प्रेरणा दोनों ही प्रदान करता है।
इनमें से अधिकांश प्रवचन ‘विवेकचूड़ामणि’ एवं ‘भगवद्गीता’ पर आधारित हैं। ये दोनों धार्मिक ग्रन्थ मनुष्य को शारीरिक चेतना से ऊपर उठने की प्रेरणा देते हैं। इन दोनों पुस्तकों में से पहली पुस्तक ज्ञान का मार्ग दिखाती है तो दूसरी भक्ति का मार्ग। पाश्चात्य महान संतों के विचार भी विशेष रूप से इस पुस्तक में संग्रहित हैं। यही इस पुस्तक की विशेषता है।
लेखक के आध्यात्मिक गुरु स्वामी विरजानन्दजी के प्रवचनों के उद्धरण भी इस ग्रन्थ में समाविष्ट हैं। यह पुस्तक लेखक ने अपने इन्हीं आध्यात्मिक गुरु को समर्पित की है। अपने परमपूज्य गुरु की कृपा से ही स्वामी गोकुलानन्द जी अपने प्रवचनों को प्रेरणादायक बनाने में समर्थ हो सके हैं। उनके प्रवचनों का लाभ अभी तक दिल्ली वासियों तक सीमित था किन्तु इस पुस्तक के माध्यम से अब अंग्रेजी के समस्त पाठक भी लाभान्वित होंगे।