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KEN UPANUSHAD-H-20

H163 Kena Upanishad (केन-उपनिषद् :शांकर भाष्य तथा हिन्दी अनुवाद सहित)

Non-returnable
Rs.20.00
Author
Srimad Shankaracharya
Pages
78
Translator
Swami Videhatmananda

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Product Details
सनातन वैदिक धर्म के ज्ञानकाण्ड को उपनिषद् कहते हैं। सहस्रों वर्ष पूर्व भारतवर्ष में जीव-जगत् तथा तत्सम्बन्धी अन्य विषयों पर गम्भीर चिन्तन के माध्यम से उनकी जो मीमांसा की गयी थी, इन उपनिषदों में उन्हीं का संकलन है। वैसे इनकी संख्या दो सौ से भी अधिक है, परन्तु आदि शंकराचार्य ने जिन दस पर भाष्य लिखा है और जिन चार-पाँच का उल्लेख किया है, उन्हें ही प्राचीनतम तथा प्रमुख माना जाता है। पूज्यपाद श्री शंकराचार्य के काल में भी ये उपनिषद् अत्यन्त प्राचीन हो चुके थे और उनका अर्थ समझना दुरूह हो गया था, अत: उन्होंने वैदिक धर्म की पुन: स्थापना हेतु प्रमुख उपनिषदों पर सरस भाष्य लिखकर अपने सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। सामान्य व्यक्ति के जिज्ञासु मन में मनातीत, इन्द्रियातीत तत्त्व के विषय में जो प्रश्न उठते हैं, उसका समाधान इस ‘केन’ उपनिषद् में युक्तियुक्त पद्धति से प्रस्तुत किया गया है। उसी को हम शांकर भाष्य तथा उसके सरल हिन्दी अनुवाद के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। प्राचीन काल में जब संस्कृत भाषा ही शिक्षा का प्रमुख माध्यम थी, तब इन दुरूह ग्रन्थों को पढ़ना तथा इनके गूढ़ तात्पर्य को समझना उतना कठिन नहीं था, परन्तु देवभाषा का पठन-पाठन क्रमश: अप्रचलित होते जाने के कारण अल्प संस्कृत जाननेवालों के लिये इनका अध्ययन सहज नहीं रह गया है। व्याकरण-शास्त्र के अनुसार गद्य में सन्धि का प्रयोग वैकल्पिक है, अत: हमने यहाँ पर सामान्य अध्येताओं को इस अध्ययन में प्रोत्साहित करने हेतु भाष्य की कठिन सन्धियों को तोड़कर उन्हें सरल रूप देने का प्रयास किया है।
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