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रामकृष्ण संघ के वरिष्ठ संन्यासियों द्वारा प्रमुखत: संस्कृत न जाननेवाले विदेशी साधकों एवं जिज्ञासुओं के लिए लिखे गये लेखों का संकलन होने के कारण इसमें योग तथा वेदान्त के ग्रन्थों में सामान्यत: पाये जानेवाले पारिभाषिक शब्दों का अभाव है। अत: यह अधिकांश लोगों द्वारा सरलता से पढ़ा जा सकेगा। आध्यात्मिक विकास तथा मनुष्य जीवन की सफलता के लिए ध्यान की साधना आवश्यक है। इस पुस्तक में चञ्चल मन को शान्त कर उसे अन्तर्यामी परमात्मा पर एकाग्र करने हेतु अनेक उपयोगी निर्देश सरल एवं सुललित भाषा में दिये गये हैं। ध्यानाभ्यास के द्वारा अन्तर्मुखी मन एकाग्र होकर हम सभी शारीरिक एवं मानसिक उपाधियों से रहित विशुद्ध चैतन्य का साक्षात्कार कर सकते हैं।