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रामकृष्ण संघ के एक वरिष्ठ संन्यासी स्वामी जपानन्द जी (१८९८-१९७२) श्रीमाँ सारदादेवी के शिष्य थे । स्वामी ब्रह्मानन्दजी से उन्हें संन्यास-दीक्षा मिली थी । उन्हें श्रीरामकृष्ण के अनेक शिष्यों का घनिष्ठ सान्निध्य मिला था । औपचारिक रूप से संन्यास की दीक्षा प्राप्त करने के पूर्व भ्रमण करते समय वे ‘साधु आत्माराम’ के नाम से अपना परिचय दिया करते थे । लेखक के रूप में वे अपना नाम गोपनीय रखना चाहते थे, अत: छद्मनाम के रूप में ‘एक संन्यासी’ अथवा ‘आत्माराम’ लिखा करते थे । इन लेखों में उन्होंने कई स्थानों पर ‘मैं’ की जगह ‘संन्यासी’ शब्द का उपयोग किया है । उन्होंने बँगला में श्रीरामकृष्ण के कुछ शिष्यों तथा अपने वैचित्र्यपूर्ण अनुभवों के आधार पर अनेक रोचक तथा प्रेरणादायी संस्मरण लिपिबद्ध किये थे ।