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STAVANANJALI SARTHA  H-130
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H255 Stavananjali (स्तवनाञ्जलिः - हिन्दी अनुवाद सहित)

Non-returnable
Rs.130.00
Author
N/A
Pages
428
Translator
Dr. Bhushankumar Upadhyaya & Swami Rajendrananda

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Product Details
“ईश्वर की महिमा के गुणगान को उपासना का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना गया है। विभिन्न स्तोत्रों के द्वारा ईश्वर की महिमा का गुणगान, हृदय की वेदना का निवेदन एवं व्याकुल प्रार्थना असंख्य मानवों के लिए चित्तशान्ति, असीम आनन्द तथा आध्यात्मिक उन्नति के साधनस्वरूप बने हुए हैं।

‘स्तूयते अनेन इति स्तोत्रम्’ – ‘जिसके द्वारा स्तुति की जाए वह स्तोत्र है’। वैदिक स्तुतियाँ ‘सूक्त’ के नाम से प्रचलित हैं, पर स्तोत्र और सूक्त समानार्थी ही हैं। अनेक सूक्त प्रेय और श्रेय, अभ्युदय और निःश्रेयस दोनों विषयों की प्रार्थना से पूर्ण आध्यात्मिक भावपूर्ण हैं तो कुछ में ऐहिक वस्तुओं की याचना की गयी है; कुछ में पाप-ताप, संकट आदि से रक्षा करने के लिए प्रार्थना की गयी है। पौराणिक स्तोत्रों में आत्मकल्याण को अधिक महत्त्व दिया गया है।

प्रस्तुत पुस्तक में श्रीरामकृष्ण-संघ की विभिन्न शाखाओं में विभिन्न धार्मिक उत्सवों के अवसर पठन किए जाने वाले कुछ प्रसिद्ध वैदिक शान्तिमन्त्रों एवं सूक्तों तथा विभिन्न देवी-देवता, अवतार आदि से सम्बन्धित ध्यानमन्त्र, प्रणाममन्त्र एवं गाए जानेवाले अनेक अर्थबोध, लालित्यपूर्ण, साधनोपयोगी उपदेशपरक मधुर स्तोत्रों का हिन्दी अनुवाद किया गया है। इन स्तोत्रों में प्रधानतः देवताओं के स्वरूप, उनकी महिमा, उनकी लीलाओं आदि का वर्णन तथा साथ ही उनकी कृपा या प्रसन्नता के लिए प्रार्थना शान्त साधक ज्ञान, भक्ति, वैराग्य आदि आध्यात्मिक सम्पदाओं के लिए प्रार्थना करता है।

इस पुस्तक में भगवद्पाद श्रीशंकराचार्यजी के अतुलनीय, उदात्त भावमय, हृदयस्पर्शी, सुललित स्तोत्रों से युक्त एकश्लोकात्मक ध्यानमन्त्र, प्रणाममन्त्र आदि से आरम्भ कर पंचकम्, षट्कम्, अष्टकम्, दशकम् आदि नामों से प्रचलित पाँच, छह, आठ, दस आदि श्लोकों की श्रुतिमधुरता आदि के काव्यसौन्दर्य का अपूर्व संगम दृष्टिगोचर होता है। इन स्तोत्रों के पाठ को जप की ही तरह चित्त को शान्त, प्रसन्न और पावन बनाने तथा आध्यात्मिक उन्नति का अमोघ एवं सुलभ साधन माना गया है। इन स्तोत्रों का श्रद्धायुक्त चित्त, शुद्ध उच्चारण, भावग्रहण, अन्तर्बाह्य शुचिता से सम्पन्न हो, स्पष्ट स्वर में एकाग्रतापूर्वक पठन करने से पाठक या श्रोता के हृदय में अनुकूल आध्यात्मिक भावों का संचार होता है।”
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