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भारतवर्ष में धर्म के अनेक आयामों की खोज हुई है, किन्तु सामाजिक, राजनैतिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में उन आयामों को सार्वजनीन मानव-विकास के लिए प्रयुक्त करने का प्रयास नहीं हुआ है। श्रीमत् स्वामी रंगनाथानन्दजी महाराज ने ‘प्रबुद्ध नागरिकता’ पर रामकृष्ण मिशन नई दिल्ली में जो भाषण दिया था, उसी का हिन्दी अनुवाद हम अभी इस पुस्तक के रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। भौतिक जडवादी दृष्टिकोण के कारण मनुष्य संकुचित मनोवृत्ति का और स्वार्थी होता है। इसके फलस्वरूप देश में सामाजिक अवनति दृग्गोचर होती है। वेदान्त-विचार के प्रकाश में संकुचित मनोवृत्ति का विकास होकर मनुष्य, राष्ट्र के बारे में अपना दायित्व समझ सकेगा। तब वह अपने धन, अधिकार और विद्या का उपयोग समाज तथा राष्ट्र के हित के लिए करेगा। इस पुस्तक में प्रकाशित ‘प्रबुद्ध नागरिकता’ के विचार केवल किसी व्यक्ति के लिए ही लाभदायक नहीं हैं, वरन् समस्त राष्ट्र की उन्नति के लिए उपादेय हैं। इससे हमारा प्रजातन्त्र सुदृढ और सक्षम होकर राष्ट्र का उद्धार होगा।