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भगवान श्रीरामकृष्णदेव की लीला सहधर्मिणी श्रीसारदादेवी आज लाखों लोगों के हृदयों में जगज्जननी तथा ‘‘माँ’’ का स्थान प्राप्त कर चुकी हैं। हम सभी आज इस तथ्य से भलिभाँति परिचित हुए हैं, कि जो परमाराध्या शक्ति पूर्व पूर्व काल में श्रीसीता, श्रीराधा के रूप में आविर्भूत हुई थीं वही इस युग में श्रीसारदादेवी-रूप धारण कर अवतीर्ण हुई हैं। श्रीमाँ स्वयं भी यह कहती थीं कि वे जगत में ईश्वर के दिव्य मातृत्व को दिखाने के लिए ही इस धराधाम पर वास्तव्य कर रही हैं। जिन भक्तों को इस करुणावतार ‘‘माँ’’ के चरणों में अधिक समय निवास का तथा उनकी सेवा का कुछ अवसर प्राप्त हुआ, वे स्वयं के जीवन को कृतार्थ तथा धन्य मानते हैं। श्रीमाँ की ऐसी ही एक सौभाग्यप्राप्त सन्तान स्वामी ईशानानन्द महाराज (वरदा महाराज) के कुछ संस्मरण इस पुस्तक में लिपिबद्ध हैं। श्री वरदा महाराज का माँ के साथ जो मधुर संबंध था, उसे देख पाठक मुग्ध हो जायेंगे। श्रीमाँ के चरित्र की विशेषताएँ — जैसे पूर्ण पवित्र जीवन, दया, करुणा, त्याग, निरभिमानता तथा दिव्य मातृत्व की अनेक घटनाएँ इन संस्मरणों में हम पाएँगे। इनका अध्ययन हमारे जीवन में शांति तथा आध्यात्मिक चेतना प्रदान करने में समर्थ है।

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