H220 Swami Premananda Ke Sanidhya Me (स्वामी प्रेमानन्द के सान्निध्य में)
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भगवान श्रीरामकृष्ण ने अपने अन्तरंग शिष्यों में से जिन कुछ का `ईश्वरकोटि' के रूप में उल्लेख किया था, बाबूराम महाराज के नाम से भी सुपरिचित स्वामी प्रेमानन्द भी उनमें से एक थे । वे पवित्रता की जीवन्त प्रतिर्मूति थे । श्रीरामकृष्ण कहते, ‘`बाबूराम की हड्डियाँ तक पवित्र हैं ।’’ १८८६ ई. में श्रीरामकृष्ण के महासमाधि के बाद से ही स्वामी प्रेमानन्द साधना और तपस्या में निमग्न थे । १८९८ ई. में स्वामी विवेकानन्द के पाश्चात्य देशों से भारत लौट आने के बाद से युग-प्रयोजन के अनुसार उनके जीवन का एक नवीन अध्याय आरम्भ हुआ । स्वामीजी ने आलमबाजार में स्थित और तदनन्तर बेलूड़ में स्थानान्तरित रामकृष्ण मठ के मुख्यालय की व्यवस्था देखने का उत्तरदायित्व अपने इन प्रिय गुरुभाई को सौंपा । स्वामी प्रेमानन्दजी ने अपनी इस नयी भूमिका को स्वीकार किया और बड़ी योग्यतापूर्वक इसे सम्पन्न किया । इसी काल से उन्होंने अपने दिव्य जीवन तथा अमृतमयी वाणी से मठ में आनेवाले ब्रह्मचारी साधकों तथा गृही भक्तों का जीवन श्रीरामकृष्ण-विवेकानन्द के भावादर्श के साँचे में डालकर उनके आध्यात्मिक उन्नति तथा चरित्र-गठन का कार्य आरम्भ किया । इन दिनों वे लोग बाबूराम महाराज के दिव्य सान्निध्य में रहकर उनके प्रेममय आचरण तथा मधुर वचनामृत का पान करके धन्य तथा कृतकत्य हो जाते थे ।