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शक्ति-पूजा के तत्त्व की यथार्थ जानकारी के अभाव में जन-मन में उसके सम्बन्ध में कई प्रकार की भ्रमात्मक धारणाएँ फैली हुई हैं। प्रस्तुत ग्रन्थ में विद्वान् लेखक ने शक्तितत्त्व के महत्त्वपूर्ण पहलुओं की विशद विवेचना करते हुए उन भ्रामक धारणाओं के निराकरण की ओर सार्थक प्रयत्न किया है। शक्ति-पूजा का उद्भव, उसका क्रम-विकास, उसकी आध्यात्मिक पृष्ठभूमि तथा मानव-जीवन के चरमोद्देश्य भगवत्प्राप्ति में उसकी उपादेयता — ऐसे विषयों पर इस ग्रन्थ में अनुभवी लेखक द्वारा पूरा-पूरा प्रकाश डाला गया है। मूल ग्रन्थ बँगला में स्वामी सारदानन्दजी द्वारा लिखा गया था। स्वामी सारदानन्दजी भगवान् श्रीरामकृष्ण देव के लीला-पार्षदों में से थे तथा स्वामी विवेकानन्दजी के गुरुभाई। उनकी आध्यात्मिक अनुभूति की गहराई अथाह थी और उनका पाण्डित्य भी वैसा ही विचक्षण था। उनकी योजना प्रस्तुत ग्रन्थ को दो भागों में निकालने की थी, पर द्वितीय भाग लिखने के पूर्व ही वे हमारे बीच से उठा लिये गये। शक्ति-पूजा के विषय पर उनका यह ग्रन्थ प्रामाणिक माना जाता है और बंग-भाषी जनता ने बड़े ही उत्साहपूर्वक इसका सादर स्वागत किया है।
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