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प्रस्तुत पुस्तक श्रीमत् स्वामी तुरीयानन्दजी महाराज के अमृतमय वार्तालापों का संकलन है। स्वामी तुरीयानन्दजी भगवान श्रीरामकृष्णदेव के अन्यतम् पार्षद थे। वे त्याग, वैराग्य एवं ज्ञान की मानो सजीव मूर्ति थे। उनका तप:पूत तेजस्वी जीवन सभी साधकों के लिए आदर्शस्वरूप है। वे सदा अत्युच्च भावभूमि में विचरण किया करते। उनके सान्निध्य में रहते समय सामान्य व्यक्तियों का मन भी उच्च आध्यात्मिक धरातल पर आरूढ़ हो जाता तथा उनके मन में ईश्वरोपलब्धि की तीव्र आकांक्षा एवं साधना की प्रबल प्रेरणा उद्दीप्त हो उठती। सरल, सुबोध भाषा में साधारण वार्तालाप के रूप में उनके श्रीमुख से धर्मजीवन के अत्यन्त गूढ़ गहन तत्त्व सहज प्रकट होते, जिनसे साधक श्रोताओं के जीवन की अनेक कठिन तथा जटिल समस्याएँ सुलझ जातीं और उन्हें नया आलोक प्राप्त होता। महाराज के निकट रहकर उनके अमूल्य वार्तालापों को श्रवण करने का सौभाग्य जिन्हें प्राप्त हुआ उनमें से कुछ भाग्यवान साधकों ने उनका कुछ अंश अपनी दैनन्दिनी में लिपिबद्ध कर रखा था।
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