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आज से डेढ़ सौ वर्ष पूर्व भगवान् श्रीरामकृष्ण की लीलासहधर्मिणी के रूप में अवनीतल पर अवतरित करुणामयी श्रीमाँ सारदादेवी की शुभ शतकोत्तर स्वर्णजयन्ती के अवसर पर उनके जीवन तथा उपदेशों के प्रचार-प्रसार हेतु विश्वव्यापी कार्यक्रमों के अन्तर्गत मातृदर्शन नामक इस पुस्तक को पाठकों के समक्ष रखते हुए हमें अत्यधिक आनन्द हो रहा है। भगवान् श्रीरामकृष्ण तथा श्रीमाँ सारदादेवी लौकिक दृष्टि से दो रूप, एक ही परब्रह्म की दो अभिव्यक्तियाँ होते हुए भी आग्न तथा उसकी दाहिकाशक्ति की तरह अभिन्न हैं। श्रीमाँ सारदादेवी के जीवन में सीता, सावित्री, दमयन्ती आदि महीयसी नारियों के समान सभी आदर्श विद्यमान हैं। उनका पूर्णरूपेण महान् तथा आदर्श जीवन दिव्यता से परिपूर्ण तथा उज्ज्वल है। वे नित्यलीलामयी पतिपरायणा सहधर्मिणी के अतिरिक्त सेवापरा-कन्या स्नेहशीला बहिन, शिष्यवत्सला गुरु तथा विशेषकर करुणामयी मुक्तिदायिनी माँ के रूप में भी दिखाई देती हैं।