Rs.20.00
Author
Swami Vivekananda Pages
84 Choose Quantity
Product Details
भगवान् की असीम कृपा से स्वामी विवेकानन्द के सुप्रसिद्ध ग्रन्थों में से एक ‘प्राच्य और पाश्चात्य’ नामक ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हो गया। यह मूल बंगला में लिखी हुई पुस्तक का अकृत्रिम और अक्षरश: अनुवाद है। हिन्दूराष्ट्र निर्माण के परिपोषक विचारों का विवेकपूर्ण विवेचन इस पुस्तक में अत्यन्त सुलभ और स्फूर्तिदायिनी भाषा में किया है। यहाँ पर आज आत्यन्तिक आग्रही मतवादियों के दो पंथ विद्यमान हैं। उनमें से एक हठ के साथ यही कहे जाता है कि जो कुछ पश्चिमीय है वही निर्दोष तथा परिपूर्ण और सर्वांगसुंदर है। एवं हमारे देश में ऐसा कुछ भी नहीं है जो विचार के योग्य हो अथवा अनुकरण का विषय बन सके। दूसरे प्रकार के लोग ‘पुराणमित्येव हि साधु सर्वम्’ कहनेवाले हैं। उनका मत है कि जो कुछ इस देश का है वही अच्छा तथा निर्दोष हो सकता है। वे यह ख्याल नहीं कर सकते कि पाश्चात्यों से तथा उनकी संस्कृति और उनके विकास से भी हम कुछ सीख सकते हैं। इस संकुचित दृष्टिकोण के कारण ही आज हिन्दूसमाज की आत्मा नष्ट होती जा रही है और साथही उसमें ऐक्य तथा शक्ति का भी ह्रास होता जा रहा है। हम आशा करते हैं कि उस महान् देशभक्त महात्मा स्वामी विवेकानन्द के खूब सोच समझ के बाद लिखे हुए ये सुसंश्लिष्ट और विधायक विचार, जो इस पुस्तक में संकलित किये गये हैं, हमारी धुंधली कल्पनाएँ शुद्ध करने में समर्थ होंगे और हमारे राष्ट्र को योग्य मार्ग पर चलाने में अमर्याद सहायता पहुँचायेंगे।