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भगवान् श्रीरामकृष्णदेव अपने शिष्यगणों एवं भक्तों के साथ वार्तालाप के क्रम में अपने दिव्य अनुभवों को बड़े ही सरल ढंग से बतलाया करते थे, जिससे उनके आध्यात्मिक जीवन के कई बुनियादी सिद्धान्त स्पष्ट होते थे। उनकी अमृतमयी वाणी को उनके एक प्रख्यात गृहस्थ भक्त श्री महेन्द्रनाथ गुप्त (श्री ‘म’) ने दैनन्दिनी के रूप में लिपिबद्ध कर लिया था। मूलतः यह बँगला में ‘श्रीरामकृष्णकथामृत’ ग्रन्थ के रूप में पाँच भागों में प्रकाशित हुआ, जिसमें ई. १८८२ से ई. १८८६ तक के वार्तालाप समाविष्ट हैं। यही संपूर्ण ग्रन्थ हिन्दी में तीन भागों में ‘श्रीरामकृष्णवचनामृत’ इस नाम से प्रकाशित हुआ है। हिन्दी में यह अनुवाद कार्य प्रसिद्ध (साहित्यकार) पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’जी ने अत्यन्त रोचक ढँग से सम्पन्न किया है।
पाठकों की सुविधा के लिए इसी बृहद् ग्रन्थ को संक्षिप्त-रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। यह चयन रामकृष्ण-संघ के वरिष्ठ संन्यासी स्वामी निखिलानन्दजी द्वारा किया गया था, जो मूल-रूप में अंग्रेजी में उपलब्ध है।
ईश्वरीय प्रसंगों के क्रम में स्वभावतः उच्च आध्यात्मिक एवं दार्शनिक तथ्य उजागर होते हैं, अतः भाषा की सरलता ही उसे सुगम्य एवं सुग्राह्य बना सकती है यह इस ग्रन्थ की मौलिकता एवं विशेषता है।
वर्तमान युग के अध्यात्म पिपासुओं के लिए यह ग्रन्थ सर्वांगीण रूप से कल्याणकारी होगा ऐसी हमारी आशा ही नहीं विश्वास भी है।