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‘भगवद्गीता’ का भारतीय शास्त्र-ग्रन्थों में अन्यतम स्थान है। इसे उपनिषद् भी कहा गया है। इसके जीवनदायी उदात्त आध्यात्मिक तत्त्व किसी व्यक्ति, जाति, धर्म, सम्प्रदाय या देश के लिए न होकर अखिल विश्व की समग्र मानव-जाति के लिए हैं। स्वभावत: इस अद्भुत एवं विलक्षण ग्रन्थ ने शताब्दियों से विश्व के मानव-मन को स्पन्दित, आलोडित, उत्प्रेरित एवं उद्दीपित किया है। वस्तुत: गीता के सन्देश सार्वजनीन हैं। इसी से विभिन्न मनीषियों, महात्माओं एवं प्रख्यात चिन्तकों ने इस ग्रन्थ की अमर टीकाएँ लिखी हैं और इसका भाष्य किया है। आचार्य शंकर, सन्त ज्ञानेश्वर, श्रीधर स्वामी, मधुसूदन सरस्वती, लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, विनोबा भावे, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन् जैसे प्रख्यात महापुरुषों ने तथा चिन्तकों ने गीता पर पुस्तकें लिखकर इसकी महत्ता प्रदर्शित की है।
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